मच्छर
जितना छोटा
उतना खोटा
एक अकेला,
सब पर भारी
हाथ न आये,
ताली पे ताली!
ख़ून चूसता बारी बारी
पंख फैलाता
उड़ता जाता
नहीं किसी से
इसकी यारी !
किसकी बाज़ू
किसकी टाँग
सब कर लाल
कर दे बेहाल !
आँखें इसकी
तेज़तर्रार
देखे वो भी जो छिपा,
न है बाहर !
धूप, बारिश
किसी से न डरता
आतंकी एसा
आँधी जैसा
एक एक मादा
कर दे पैदा
फ़ौज भयंकर अफ़लातूनी !
डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया
सब इसकी ही कारसतानी !
क्या बच्चे,
क्या बड़े, बूढ़े
क्या पंडित, मौलवी और फ़क़ीर
कोई न बचता
इसके डंक से
देखो कैसा अपक्षपाती !
हाँ मैं मच्छर
ख़ुराफ़ाती !
करता वह जो
मन में आती
पंडित , मौलवी और फ़क़ीर
न किसी की तरफ़दारी
पाँव पड़ता
पूजा करता
सबका भक्त मैं
एक सा ही
आशीर्वाद आप ही ले लिया करता
चख कर ख़ून देख लिया करता
कौन है राजा
कौन भिखारी !
कुछ न अंतर
सब बवंडर !
मच्छर मैं भी हूँ
अनुभवी !
डॉ गुंचा गुप्ता
१२/०३/२०१९
Hahaha
ReplyDeleteGud one
Thank you 🙏
DeleteGood
ReplyDeleteThank you 🙏
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